आज से 40 साल पुरानी बात है| वृंदावन में एक संत हुआ करते थे जो कि हर दिन भगवान जगदीश के मंदिर के बाहर जाते और वहां की मिट्टी को माथे में लगाकर वापस लौट आते थे, किंतु वे कभी मंदिर के अंदर नहीं जाते थे| सब लोग इन संत को जज साहब, जज साहब कहकर बुलाया करते थे|
जब एक बार एक व्यक्ति ने वहां के पुरोहित से पूछा कि इन्हें सब जज साहब कहकर क्यों बुलाते हैं! तब पुरोहित ने उन्हें सारी घटना बताते हुए कहा कि, एक समय की बात है जब यह दक्षिण भारत के एक छोटे से शहर में जज हुआ करते थे| उस शहर से लगे एक छोटे से गांव में एक केवट रहा करता था जिसका नाम भोला था| यह व्यक्ति ना केवल नाम से बल्कि स्वभाव से भी भोला था|
यह व्यक्ति इतना सीधा साधा था कि अगर इससे कोई भी कुछ पूछता था, किसी भी विषय में तो यह कहता था, कि भैया! मैं तो कुछ नहीं जानता जो जाने रघुनाथ जी जाने|
भोला प्रभु श्री राम का भक्त था और चलते फिरते या कुछ काम करते उन्हें ही याद करता रहता था| भोला के दो लड़के और एक लड़की थी| जब उसकी लड़की की शादी की उम्र हुई तो बोला कि लड़कों ने उससे कहा कि पिताजी बहन की शादी के लिए क्यों ना यहां के सेठ जी से थोड़े समय के लिए कुछ रुपए ले लिए जाएं और फिर हम लोग उस रुपए को काम करके ब्याज के साथ लौटा देंगे| भोला ने ठीक वैसा ही किया, उसने वहां के जमींदार से कुछ समय के लिए कुछ रुपए ले लिए और अपनी बेटी की शादी के बाद एक निश्चित अवधि में पूरे पैसे ब्याज के साथ चुका दिए|
जब भोला ने सेठ जी को पूरे पैसे लौटा दिए तो सेठ जी ने भोला को कोई पर्ची दी जिसमें लिखा था कि उसने पूरे पैसे ब्याज के साथ चुका दिए सेठ जी ने बोला से कहा कि देखो और पढ़ कर बताओ इसमें क्या लिखा है| अब भोला तो बेचारा अनपढ़ और सीधा साधा था, वह क्या जाने तो उसने हमेशा की तरह ही बोला कि मैं कुछ नहीं जानता जो जाने रघुनाथ जी जाने |
यह सुनकर पेट के मन में लालच आ गया और उसने भोला से बोला कि भोला जरा मेरे लिए एक गिलास पानी ले आओ, जब भोला पानी लेने गया तो उस सेठ ने उस पर्ची को दूसरी पर्ची से बदल दिया जिसमें लिखा था कि अभी इसमें पूरे पैसे नहीं चुकाए हैं |
फिर कुछ दिनों के बाद सेठ ने अदालत में भोला पर केस कर दिया |जब जज ने भोला से इस बारे में पूछा तो भोला ने वह पर्ची दिखाई उसके पास रखी थी परंतु उस पर्ची में तो लिखा था किसने अभी पूरे पैसे नहीं चुकाए हैं|
जज ने जब भोला को उस पर्ची में क्या लिखा है बताया तो भोला जोर जोर से रोने लगा और फिर हमेशा की तरह बोला कि मैं कुछ नहीं जानता जो जाने रघुनाथ जी जाने |
जज थोड़ा दयालु था उस दिन अदालत का समय खत्म होने के बाद उसने बुलाया और पूछा कि जब तुमने उस सेठ को रुपए चुकाए तो क्या तुम दोनों के अलावा कोई और व्यक्ति भी था वहां पर तब भोला ने जवाब दिया कि हम दोनों के सिवा वहां सिर्फ रघुनाथ जी थे और कोई नहीं था|
जज को लगा कि लगा कि यह कोई गांव में रहने वाला व्यक्ति होगा फिर उसने भोला को जाने को कहा और सोचा कि यह व्यक्ति तो गरीब है तो क्यों ना मैं ही रघुनाथ के नाम की चिट्ठी लिखकर उसे अदालत में हाजिर होने को कहूँ|
और फिर उसने उस गांव में रघुनाथ जी के नाम की चिट्ठी भेजी, पोस्टमैन चिट्ठी लेकर घूमते घूमते परेशान हो गया परंतु रघुनाथ नाम के व्यक्ति का घर नहीं मिला क्योंकि उस गांव में रघुनाथ जी नाम का कोई व्यक्ति था ही नहीं |
अंत में एक व्यक्ति ने उसे बताया कि यहां पर रघुनाथ का एक मंदिर है, हो सकता है कि यह चिट्ठी वहां की हो, फिर पोस्ट मैंने वैसा ही किया उसी रघुनाथ जी के मंदिर में गया जहां भोला रहता था उसने चिट्ठी मंदिर के पंडित को पकड़ा दी जब उस पंडित ने चिट्ठी देखी तो मन ही मन सोचा कि प्रभु जब आपने चिट्ठी मंगवा ही ली है तो मैं इसे रख लेता हूं और फिर पंडित ने पोस्टमैन से चिट्ठी लेकर हस्ताक्षर कर दिए और उस चिट्ठी को मंदिर में प्रभु के चरणों में जाकर रख दिया और प्रभु से भावुक होकर प्रार्थना की हे भगवान आपके अलावा इस भोले व्यक्ति का कोई भी नहीं है अब आप ही को करना है जो करना है|
जब अदालत में हाजिर होने की तारीख पास आई तो उस पंडित में भोला को एक दिन पहले ही शहर भेज दिया ताकि वह समय से पहुंच जाएं और फिर उस अदालत की तारीख के दिन पंडित जी जल्दी सुबह उठकर भगवान को कई वस्त्र अर्पण कर तैयार कर दिया और उनकी पूजा कर प्रार्थना की कि हे! प्रभु इन सभी वस्तुओं में आपको जो पसंद हो वह पहने और कृपा करके आज आप अदालत में जरूर जाएं और भोला की मदद करें |
अब भक्त तो भावुक होते हैं और उसने भी ऐसे ही भावुक होकर प्रार्थना की|
जब अदालत ने जज ने भोला से पूछा कि कहां है तुम्हारे रघुनाथ जी तो उसने जवाब दिया कि वह तो हर जगह रहते हैं होंगे यही कहीं आस-पास| फिर जज ने अपने चपरासी को रघुनाथ नाम के व्यक्ति को हाजिर होने का ऐलान करने के लिए आदेश दिया|
जब चपरासी ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरु किया कि रघुनाथ जहां भी हो सामने हाजिर हो, ऐसा उसके दो से तीन बार बोलने में ही सब ने देखा कि एक बूढा सा व्यक्ति जिसके माथे में तिलक और गले में तुलसी की माला खड़ा हुआ और लाठी टेकते हुए चला आ रहा है|
उसे कठघरे में खड़ा करके जब जज ने उससे पूछा कि क्या तुम्हारे सामने इस भोला ने सेठ को पूरे पैसे चुका दिए हैं तो उसने जवाब दिया हाँ |
फिर जज जज ने कहा कि तुम्हारे पास क्या सबूत है तो उस रघुनाथ नाम के बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि कृपया सेठ जी को अदालत में ही रोककर रखें और इनके घर सिपाही भेजकर इनके कमरे में रखी तीन अलमारियों में से बीच वाली अलमारी में रखी 22 नंबर की फाइल खोलकर देखी जाए तो आपको वो पर्ची मिल जाएगी जिसमें भोला के द्वारा चुकाए गए सारे पैसे की पुष्टि की है |
जज ने सिपाही भेजे और वैसा ही हुआ वह वह पर्ची मिली जिसे देखते हुए जज ने बरी कर दिया और उस सेठ को दंडित भी किया|
उस गवाह के जाने के बाद उस जज ने भोला से पूछा कि रघुनाथ कहां रहता है तो भोला ने बोला वहीं जहां हम रहते हैं, तो जज ने पूछा तुम कहां रहते हो तो उसने कहा कि मंदिर में, फिर जज साहब ने बोला तो क्या इन्होंने वह मंदिर बनवाया है तो भोला बोला साहब अब मैं आपको क्या समझाऊं, आप तो पढ़े लिखे हैं|
क्या है कि पढ़े-लिखे लोगों को भगवान और भक्त की बात समझाना कठिन होता है, फिर भोला ने बोला कि यह वह है जो मंदिर में बैठे हैं |
फिर भोला के जाने के बाद जज साहब ने पोस्टमैन को बुलाकर पूछा कि यह कौन है तो उसने बताया कि यह वह व्यक्ति नहीं थे इतने चिट्ठी लेते समय हस्ताक्षर किए थे फिर जज साहब जब गांव में गए और उन्हें पूरी घटना का अहसास हुआ तो तुरंत अपने बंगले में लौटे और फूट-फूट कर रोने लगे और उन्होंने उसी दिन अपने पद से इस्तीफा दे दिया|
जब लोगों ने उनसे कहा कि यह तो खुशी की बात कि भगवान की आप को दर्शन हुए आप रो क्यों रहे हैं तो उन्होंने कहा कि जिस की अदालत में हर कोई को हाजिर होना है वह स्वयं मेरी अदालत में आए गवाही देने और वह जब खड़े थे तो मैं बैठा हुआ था |
ऐसा कहकर बहुत जोर जोर से रोने लगे| फिर जज साहब पूरा वैराग्य लेकर वृंदावन चले गए और साधु संत जैसा जीवन बिताने लगे |
वह हमेशा प्रभु के मंदिर जाते और बाहर से ही वहां की मिट्टी को अपने माथे पर लगा कर लौट जाते | हमेशा
खड़े रहते थे क्योंकि उनका कहना था कि प्रभु के आगमन में जब मैं बैठा था तो अब मैं खड़ा ही ठीक हूं|
उनका यह भी कहना था कि मैं किस मुंह से मंदिर के अंदर जाऊं इसलिए मैं बाहर ही रहता हूं |
Pic Source- Google
Rama श्रीराम
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